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Friday, February 11, 2011

अदृश्य दोस्त



हम दोनों तो आए थे साथ साथ दुनिया में,
हमारा साथ कही छूट गया जिन्दगी की दौड़ में.

साथ साथ खेले थे हम दोनों बचपन में,
तोड़ा साथ हमारा जिन्दगी के झमेले ने.

एक अच्छा अदृश्य दोस्त था मैं,
दृश्य व्यक्ति का पक्का साथी था मैं.

खो गए वो दिन बचपन के हमारे,
एक दूसरे से अलग हो गए हम दोस्त प्यारे.

समय गुज़रते देर नहीं लगाती है,
परिक्रमा पूरी होते ही समय पलटता है.

जमी हुई कालक की परत एक दिन हटती है,
परन्तु कुछ लोगों के लिए यह समय बहुत देर करता है.

कुछ लोग रु ब रु होते हैं अपनी आत्मा से,
काश हम रखते उस बचपन के दोस्त को ध्यान से.
renukakkar 4.2.2011
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