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Friday, February 11, 2011

जिन्दगी के पन्ने

















जिन्दगी  के पन्ने पलटते ही सोचते हैं,
पलट जाए जिन्दगी तो क्या बात है.

गुज़रा मय आता कभी नहीं,
लौट आए कभी तो क्या बात है.

फिर से जी लेंगे अपनी जिन्दगी,
चहका करेंगे फिर से तो क्या बात है.

 गलतियों को सुधार लेंगे हम भी,

अच्छा समय मिल जाए तो क्या बात है.

ख़्वाबों में मिलने वाले हैं जो कोई,
हकीकत में फिर से मिल जाए तो क्या बात  है.

जो हमारे हैं, वह हमारे पास ही हैं,
दिल से बाहर आ जाए तो क्या बात है.

जो चले गए, वह हमारे पास नहीं हैं,
उन्हें सोचने से बात कोई ती  नहीं है.

ख्वाब तो ख्वाब होते ही हैं,
हकीकत बन जाए तो क्या बात है.
रेनू कक्कर  24.01.2011
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