My poems

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Wednesday, August 31, 2011

क्या हम अकेले है ?



फलक पे एक अंधेरा
भगाते उसे अनेक सितारे.

थके हारे इंसानों को
देते हैं लोग सहारे.

चलता सूरज दिखता अकेला
कई ग्रह उसके हैं साथी.

दिया अकेला रौशनी देता
चिराग तले अंधेरा भी उसका साथी.

हर एक फूल है अकेला
दिखता तो गुलदस्ते में.

परंतु बनता गुल्दस्ता
हमेशां अनेक फूलों से.

अकेले हम तो नहीं चलते
हमारे संग चलते फ़रिश्ते.

यह अलग बात है लेकिन
बुलाने पर वह सामने आते.

हम हमेशां क्यों यह सोचें
अकेले रह गए परेशां.

साथ-साथ हाथ बटाते
फ़रिश्तो के साथ दिखते भगवान.

इंसान क्यों यह सोचे
कि वह रह गया अकेला.

ज़िंदगी तो आना जाना है
दुनिया में तो लगा है मेला.

renukakkar 28. 8. 2011
copyright@2011

2 comments:

  1. व्यक्ति अकेला नही होता , सोच होती अकेली है /
    साथ रह कर भी दुनियाँ, कहाँ साथ चली है /
    साथी दूर हुए ,तो कभी अपने पराये ,
    कभी सुलझ न पाए ,जीवन एक पहेली है //

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