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Saturday, May 28, 2011

रास्ते और मंज़िल













मंज़िल है और राहें भी हैं,
पर राहॊं में घौर अँधेरे हैं.

हम मंज़िल तक जाए तो कैसे,
दिखाई नहीं देते हमें स्वच्छ रास्ते.

किसी तरहं वहाँ हमें जाना है,
हमारे जीवन का वहाँ अंतिम ठिकाना है.

देर न हो जाए भगवन देर न हो जाए,
रेत की तरहं समय हाथ से न निकल जाए.

हे रब्बा हमारे रास्तो पर करो रौशनी,
सूरज की न हो तो चाँद की करो चाँदनी.

मद्दत कर दे रब्बा हमारे मार्ग स्वच्छ कर दे,
हमें नहीं लेजाना तो मंज़िल यहाँ ला दे.

renukakkar 28.5.2011
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