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Friday, September 16, 2011

देव दूत




जब अन्तर ध्यान में हम होते हैं   
कोई देव दूत से सामने आते हैं. 

ऐसा लगता है कि वो चलते नहीं    
समझो आते हैं तिरते यूँ ही. 

नूर चमकता है उनके चेहरे से और  
आँखों से झलकता है दया का सागर.   

स्वर्ग के खास बाशिंदे लगते हैं  
धरती पर ऐसा कहां कोई मिलता है. 

तारों के बीचो-बीच वो सरकते 
गृह और सितारे उनके एक तरफ चलते.   

आकाश गंगा दूसरी तरफ है बहती  
हमारे सामने नित नई सृष्टियां हैं रचती.    

उनके आभा मंडल मैं है चकाचौंध रोशनी  
साधु वस्त्रों से भी अनुभव होती  है चांदनी.   

सफेद घुँघराले लम्बे केश और वैसी ही दाढ़ी उनकी   
ऊँचा कद है उनका और सफेद रस्सी है बंधी.    

सफेद टेढी लाठी हाथ में है थामी
यहाँ  वहाँ उसकी बजने की आवाज़ है आती.  

अचानक मेरे सामने आ कर वो यूँ रुक जाते 
और उठा हाथ आशीर्वाद देते हैं मुझे मुस्कराते.

भावुक मन होने से मेरी भर आती हैं आंखें 
वैसे भी तेज़ रोशनी से नैन नीर बरसाते.     

जहाँ से वो आए थे वो वापिस चले जाते     
अन्धकार लौट आता मेरे सामने फिर से . 

ध्यान से बहार जब हम आते हैं    
कुछ खोने का एहसास होता है.    

जब भी उस दृश्य के बारे में सोचते हैं 
उस दृश्य का मतलब खोजते  हैं. 

कौन थे वो देव दयालु रोशनी वाले? 
भगवान या देव दूत या कोई फ़रिश्ते ?

रेनू कक्कड़ १६.९.२०११ 
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