याद हमें आती हैं बचपन के दिनों की,
दो महीने की छुट्टियो को बीताने के दिनों की.
तपती गर्मीयो के दिनों में सब भागते,
दिल्ली मुंबई से पलेन, ट्रेन और बस पकड़ते.
थके और मुरझाऐ ठंडी वादियों में पहुंचते,
जहाँ रहते थे दादा दादी हमारे.
वहां का पानी जैसे फ्रिज में रखखी बिसलेरी.
चारो तरफ प्राकृतिक हवा थी चलती.
बिना रोक टोक सारा दिन हम उधम मचाते,
कभी कनालपत्थरी तो कभी भाग्सू हम जाते.
पिक-निक की योजना बनाकर पैदल ही चलते,
झर्ने के पानी में सलेट लगा आम ठन्डे थे करते.
रात को बिच्छोनें लगते थे आंगन में,
तारों के नीचे शुद्ध और ठंडी वायु की गोद में.
दादी सुनाती थी अजब कहानियाँ,
पारियों तथा यु अफ औ की कहानियाँ.
न दादा न दादी रहे और न रहे बच्चे हम,
परन्तु अब भी जाते हैं ठंडी वादियों में हम.
गर्मी की छुट्टियों में अपने बच्चों को लेकर,
जाते हैं हम अब बच्चों की नानी के घर.
रेनू कक्कर 26.2.2011
Renu ___ you are a loving person and as such many love you. You obviously have love and concern for all the peoples and moralities of the whole world.
ReplyDeleteI am beter for having met you.
Peace / donn