साथी है बचपन से मेरी,
साथ मेरे हमेशा रहती.
मैं चलती हूँ सीधे हो कर,
वह चलती है हमेशा सो का.
कोशिश है उसकी मुझे हराना,
मेरे पहले खुद को पहुंचना.
बंधी हुई है मुझ से वह यह जानती ,
अपनी नई पहचान को ढूँढ़ती
शायद परेशान मेरी आदतों से,
अपने लिए ढूँढ़ती है कोई ठिकाने से.
मेरी अलग थलग जिन्दगी सी,
औरों की जिन्दगी लगे उसे सम्बIली सी.
काश ऐसा हो पता कभी,
उसे मैं जाने देती तभी.
अपनी जिन्दगी खुद जी लेती,
वह भी और मैं भी.
परछाई तो परछाई है,
अलग ज़ीने का दस्तूर नहीं.
हम दोनों को बंदे रहना है अभी,
रिहाई का समय अभी आया नहीं.
जब वों समय आ जाएगा,
तब रिहाई का दिन हो जाएगा.
एक दूसरे से मुक्त होंगे हम,
जाएगी अपने अपने रास्ते हम.
renukakkar 16.1.2011
Copyright © 2011
साथ मेरे हमेशा रहती.
मैं चलती हूँ सीधे हो कर,
वह चलती है हमेशा सो का.
कोशिश है उसकी मुझे हराना,
मेरे पहले खुद को पहुंचना.
बंधी हुई है मुझ से वह यह जानती ,
अपनी नई पहचान को ढूँढ़ती
शायद परेशान मेरी आदतों से,
अपने लिए ढूँढ़ती है कोई ठिकाने से.
मेरी अलग थलग जिन्दगी सी,
औरों की जिन्दगी लगे उसे सम्बIली सी.
काश ऐसा हो पता कभी,
उसे मैं जाने देती तभी.
अपनी जिन्दगी खुद जी लेती,
वह भी और मैं भी.
परछाई तो परछाई है,
अलग ज़ीने का दस्तूर नहीं.
हम दोनों को बंदे रहना है अभी,
रिहाई का समय अभी आया नहीं.
जब वों समय आ जाएगा,
तब रिहाई का दिन हो जाएगा.
एक दूसरे से मुक्त होंगे हम,
जाएगी अपने अपने रास्ते हम.
renukakkar 16.1.2011
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